Tuesday 17 May 2011

More Poetry

Just had the privilege of listening to these lovely verses from Harivansh Rai Bachchan's Madhushala, recited by none other than Amitabh Bachchan:

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला,
'किस पथ से जाऊं?' असमंजस में है वो भोला भाला,
अलग अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूं —
'राह पकड़ तू एक चलाचल, पा जाएगा मधुशाला।'

एक बरस में एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी जलती दीपों की माला,
दुनियावालों किंतु किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन में होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।

मुसलमान औ' हिंदू हैं दो, एक मगर उनका प्याला,
एक मगर उनका मदिरालय, एक मगर उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मंदिर मस्जिद में जाते,
बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद मेल कराती मधुशाला!

[Update: Video]

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