बरसों के इंतज़ार का अंजाम लिख दिया
काग़ज़ पे शाम काट के फिर शाम लिख दिया
बिखरी पड़ी थीं टूट के कलियाँ ज़मीन पर
तरतीब देके मैंने तेरा नाम लिख दिया
आसान नहीं थी तर्क-ए-मोहब्बत की दास्ताँ
दो आंसुओं ने आख़िरी पैग़ाम लिख दिया
हमको किसी के हुस्न ने शायर बना दिया
होठों का नाम ले न सके, जाम लिख दिया
अल्लाह ज़िन्दगी से कहाँ तक निभाऊँ मैं
किस बेवफ़ा के साथ मेरा नाम लिख दिया
तक़सीम हो रही थीं ख़ुदाई की नेमतें
एक इश्क़ बच गया सो मेरे नाम लिख दिया
'क़ैसर' किसी की देन है यह शायरी मेरी
उसकी ग़ज़ल पे जिसने मेरा नाम लिख दिया
[Qawwali]
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